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कविता : स्‍त्री का प्रतिरोध -सोनम मौर्या


स्त्री का प्रतिरोध

क्या तुम्हें पता है
एक स्त्री का प्रतिरोध
क्यों और कहां से शुरू होता है?
मुझे पता है
तुम कहोगे नहीं
तो सुनो मैं बताती हूँ
एक स्त्री का तो जन्म ही प्रतिरोध से होता है,
क्योंकि यहाँ हर बाप को बेटी नहीं,
बेटा चाहिए होता है।

उसके जन्म के बाद
हर बाप भूल जाता है
उसके इस प्रतिरोध को,
तभी तो वह तरह-तरह के
षडयन्त्र रचता है उसके खिलाफ
और कहता है कि
इसका जन्म हो भी गया तो क्या?
जिन्दगी भी जी पायेगी यह अपनी मर्जी से
और फिर शुरू करता है वह
उसके ऊपर कभी न खत्म होने वाली
शोषण की एक अनवरत प्रक्रिया
तरह-तरह के नियम-कानून
उस पर लागू कर बना दिया जाता है
उसे महज एक स्त्री
लाद दी जाती हैं
उसके ऊपर दुनिया कि सारी नैतिकताएं
और साथ ही दी जाती है यह हिदायत
कि स्त्रियाँ तो हमेशा से
पुरुषों की न्यामतों पर ही जीती आयी हैं
वरना उनका कुछ है भी
इस धरती पर
पुरुष जैसी जिन्दगी उसे बक्से
वह उसके लिए काफी होनी चाहिए
और फिर कर दी जाती है मजबूर
जिन्दगी भर पुरुषों की
वफादार पालतू जानवर की तरह गुलामी करने पर
डाल दी जाती हैं बेड़ियों के रूप में
उनके पैरों में पायलें
कैद कर दिया जाता है
उन्हें चारदीवारी के अन्दर
हर मोड़, हर चौराहे,
हर नुक्कड़ पर उसे
यह एहसास दिलाया जाता है
कि वह एक स्त्री है
महज एक पालतू जानवर
इससे बढ़कर कुछ भी तो नहीं
फिर भी वह
इसका विरोध कर ये कहे कि      
वह भी तो उनकी ही तरह एक इन्सान है,
उसे भी तो जीने का हक है
आखिर किस-किस को कैद करोगे
धोखेबाज, लालची जालिमों?
केवल हमीं नहीं, आधी आबादी है
यहाँ मुक्ति की आकांक्षी
जिन सलाखों को देखकर इतराते हो तुम
एक दिन तुम्हारी आँखों के सामने ही 
उन्हीं सलाखों के साथ उड़ जायेंगे हमसब
और देखती रह जायेंगी
तुम्हारी धोखेबाज, ललचायी आँखें

फिर क्या?
यह सुन
कर दिया जाता है उसे घर से बेघर
यह कहकर कि स्त्रियों का कोई
अपना गाँव, घर और देश नहीं होता
इन मनुवादियों को
शायद ये नहीं पता
कि जो पैदा ही प्रतिरोध से हुई हों

वह कभी बगावत से नहीं डरतीं
और न ही कभी पीछे हटती हैं
बल्कि अपनी जिन्दगी को
और मुकम्मल बनाने के लिए
कूद पड़ेंगी इस पितृसत्ता रूपी खूनी
चक्रव्यूह को भेदने के लिए
इस तरह देंगी तुम्हारी हर चाल को मात
कि फिर कोई चाल चलने को बाकी न बचोगे
कि उन्हें पता है
भले ही आज उनके पास खोने को
कुछ भी न हो
लेकिन पाने के लिए
उनका छीना हुआ
आत्मसम्मान
स्वतंत्रता
हक-अधिकार और भी बहुत कुछ है।


                                         
                           -सोनम मौर्या
जेएनयू, नई दिल्ली-110067



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