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कहानी: बड़े भैया के हसीन सपने -लल्‍टू कुमार

  कहानी   बड़े भैया के हसीन सपने 

बड़े भैया पेशे से सहायक आचार्य हैं| उनकी बदनसीबी ये है कि वे जिस संस्था से जुड़े हुए हैं वह गैर-सरकारी है| बड़े भैया हर रोज तय समय से विभाग जाते हैं और दिन-भर कड़ी मेहनत के बाद शाम को ठीक समय से अपने आवास पर लौट आते हैं| यूँ तो बड़े भैया बड़े दिलेर किस्म के इन्सान हैं लेकिन बोलते बहुत कम हैं| बस काम भर बोलते हैं| बड़े भैया के एक सहकर्मी हैं जो दिल के बड़े ही पाक साफ़ हैं और बात बात पे रूठने की आदत है| अपनी कवि प्रतिभा और कुछ विशेष गुण के चलते छात्रों के बीच वे चाचा ग़ालिब के नाम से मशहूर हैं| बड़े भैया के एक और सहकर्मी हैं जिनके बारे में मुझे ज्यादा कुछ नहीं मालूम है| हाँ, लेकिन इधर जब भी उनसे मुलाकात होती है तो वे थोड़े खोये-खोये से नज़र आते हैं| विभाग से सम्बंधित कार्यालयी कार्य बड़े भैया को खुद ही देखना पड़ता हैं क्योंकि विभाग का प्रभार इस वक्त उन्हीं के पास है और सहयोग के लिए अलग से फ़िलहाल कोई कर्मचारी नियुक्त नहीं है|

विभाग के छात्रों की बात करे तो यहाँ हर तरह की प्रतिभा से लैस छात्र आपको मिल जायेंगे| लेकिन वे अपने नसीब को हमेशा कोसते नजर आते हैं बिलकुल बड़े भैया की तरह...|

एक दिन की बात है बड़े भैया बहुत परेशान नज़र आ रहे थे| तभी सिंटू ने आगे बढ़कर पूछा– क्या हुआ गुरूजी?


बड़े भैया बहुत गुस्से में आ गये और कहा– सारे विद्यार्थी कहाँ गायब है कुछ पता नहीं| काम पड़ने पर एक भी नजर नहीं आते, आज सबकी ख़बर लेता हूँ|

बेचारा सिंटू बहुत डर गया और डरते डरते अपने सहपाठियों को गुरूजी के रौद्र रूप के बारे में सूचना दे दी| अब सभी विद्यार्थी परेशान| जो जहाँ जिस हाल में थे सूचना मिलते ही विभाग की तरफ़ चल दिए| जो पहुँच पाने में असमर्थ थे या यूँ कहें की जो इलाके के बाहर थे वे भी अपने बचाव के लिए उचित कारण की तलाश में जुट गए|

इधर विद्यार्थियों के बीच भय का माहौल था और उधर गुरूजी का रौद्ररूप शांत हो चुका था| लेकिन चाचा ग़ालिब इसे व्यक्तिगत मुद्दा मानकर रूठे हुए थे| तभी दिनेश ने पूछा– सर कोई काम...? इतना सुनते ही बड़े भैया जबतक कुछ बोलते चाचा ने मोर्चा संभाला– आप लोगों को तो विभाग से कोई मतलब ही नहीं है| क्यूँ मैं सही कह रहा हूँ न...??? तबतक बगल में खड़ा पिंटू ने कहा- सर हमलोगों को कोई सूचना नहीं थी| पिंटू के इतना कहते ही दोनों गुरूजी (बड़े भाई और चाचा ग़ालिब) ने उसे एक साथ देखा...| मानो, उस लड़के ने कोई ऐसी बात कह दी हो जो गुरूजी के शान के खिलाफ़ हो...| दोनों गुरूजी का एक साथ उस लड़के को देखना कहीं न कहीं सत्ता का एक खौफ़नाक चेहरा था जो अपने खिलाफ़ उठने वाली हर छोटी से छोटी आवाज को समय रहते दबा देना चाहती है| पिंटू काफी डर गया था| उसे लगने लगा कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी है उसे अपने किये पर बार बार पछतावा हो रहा था| जबकि विभागीय कार्यक्रम की सूचना पाना, उसका अधिकार है|

चाचा ग़ालिब बहुत ही भले आदमी हैं| वे अपने छात्रों को बहुत प्यार करते हैं| मेरी और चाचा की बहुत अच्छी दोस्ती है| दरअसल मैं बड़े भाई साहब के साथ रहता हूँ जिस कारण बराबर चाय पे मिलना हो जाता है| चाचा अपने नाम के विषय में बताते हैं कि एक बार मिर्जा ग़ालिब भटकते हुए इनके गाँव में आये थे| उस वक्त चाचा के पिता पाँचवी क्लास के छात्र थे तथा हिंदी उर्दू कविता में उनकी ख़ास दिलचस्पी थी| गाँववालों के विशेष आग्रह पर ग़ालिब ने उस समय कई शेर पढे थे| जो आगे चलकर दीवाने ग़ालिब में अपनी ख़ास मुकाम हासिल की| उसी वक्त चाचा के पिताजी ने तय किया कि हम अपनी पहली औलाद का नाम ग़ालिब रखेंगे| विशेष ज्ञान और पकाऊ प्रवृति के चलते कालांतर में ग़ालिब कुमार कब चाचा ग़ालिब हो गए चाचा को इसकी भनक तक नहीं है|


एक बार मैं और चाचा लम्बी यात्रा पे गए थे | उस वक्त विभागीय काम थोड़ा कम था लेकिन चाचा रास्ते भर मुझे इस बात के लिए दोष देते रहे कि मेरे कहने पर ही उन्होंने विभाग से छुट्टी ली है| चाचा को देखकर आपको यूँ लगेगा की विभाग आने जाने के अलावे इनके पास कोई काम नहीं है| चाचा को भगवान का दिया हुआ सबकुछ है| एक बेटी और एक बेटा के साथ पूरा हँसता खेलता परिवार| लेकिन चाचा के पकाऊ प्रवृति के चलते हर कोई उनसे एक ख़ास दूरी बरकरार रखते हैं| चाचा और मैं घूमते-घूमते जब थक गए तो एक जगह आराम करने के लिए रूके| चाचा के होते हुए आराम क्या खाक करते...| चाचा की एक और खासियत हैं वे प्रश्न शैली में बात-चित करते हैं| मैं मन ही मन रेणु की चर्चित कहानी तीसरी कसम के तर्ज पर हीरामन की भांति कसम खा रहा था कि जिन्दगी में चाचा के साथ दोबारा कभी घुमने नहीं जाऊंगा...|

पिंटू शाम को मेरे पास आया और रोने लगा| वह बहुत देर तक फूट–फूट कर रोया| मैंने उसे जी भरके रोने दिया| चाय बनाने के बाद मैंने उसे अपने सीने से लगाकर चुप किया और गरमा-गरम चाय से स्वागत किया तथा रोने का कारण पूछा| पिंटू ने सब कुछ बिना किसी लग लपेट के साफ-साफ शब्दों में सुना दिया| मैंने पिंटू का हौसला बढाया और न डरने की सलाह दी| लेकिन डर तो डर होता है चाहे छोटी से छोटी बात की हो या बड़ी से बड़ी बात की| आपके मन के भीतर की परेशानी आपके चेहरे पे साफ-साफ नज़र आती है| पिंटू के चेहरे पर भी हंसी की जगह आज एक अनकही सी ख़ामोशी नज़र आ रही थी|

पिंटू हमेशा मुस्कुराने वाला लड़का है चाहे खुशी हो या गम| साधारणतया पिंटू को देखकर आप ये नहीं कह सकते की पिंटू अपने जीवन में एक साथ कई मोर्चों पे सक्रिय है| वह इस समय अगर आपके सामने बैठा चाय पी रहा है तो यकीन मानिए उसी समय उसका ध्यान बस्तर के आदिवासियों पे भी है जो अपने जल-जंगल और जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं| वह मानेसर के मारूति मजदूरों के साथ भी खड़ा है जिसे हमारी भ्रष्ट न्याय व्यवस्था ने हाल ही में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है| वह बिहार, यूपी से लेकर विदर्भ तक देश के विभिन्न हिस्सों के तमाम किसानों की लचर हालत पे मन ही मन रो रहा है| वह देश की शिक्षा व्यवस्था और बेरोजगार युवाओं के साथ कंधा से कंधा मिला कर सरकार की नीतियों का विरोध कर रहा है| पिंटू अपने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखा है| वह बचपन से लेकर अब तक कई बार सांसारिक दुःख और छदम राजनीति का शिकार हुआ है | वह टूटा तो हजारों बार है लेकिन बिखरने से ठीक पहले सम्भल कर खड़ा हो जाता है|

चाचा ग़ालिब पिंटू को जानना चाहते हैं| वे कई बार मुझसे पिंटू के बारे में अकेले में पूछ चुके हैं लेकिन क्या चाचा के लिए पिंटू को जानना इतना आसन होगा जितना चाचा समझते हैं| पिंटू क्या है ये पिंटू भी नहीं जनता| और मैं भी नहीं... फिर चाचा...???


पिंटू जब से यहाँ आया है| चाचा उसके पीछे हाँथ धोकर पड़े हैं| पिंटू को कभी-कभी लगता है चाचा कहीं बुरे आदमी तो नहीं है| लेकिन फिर पिंटू अपने कामों में उलझ जाता है और अगले दिन फिर से चाचा के सामने पुराने चिर-परिचित अंदाज में खड़ा हो जाता है| उसे चाचा ग़ालिब संसार के सबसे अच्छे गुरूजी प्रतीत होते हैं| वह अपने पुराने ग़मों को भूल जाता है और चाचा की बातों में आ जाता है| पिंटू हर हाल में यही चाहता है कि चाचा उससे खुश रहें| वह चाचा से उलझना नहीं चाहता है| चाचा क्या पिंटू किसी से भी उलझना नहीं चाहता है| उसके जीवन के रास्ते और मंजिल पहले से तय हैं| वह सोते-जागते खुद को इस भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ़ लड़ने के काबिल बनाने को लेकर चिंतित रहता है|

पिंटू बड़े भैया की बहुत इज्जत करता है| वह ऐसा क्यों करता है इसका जवाब पिंटू के पास नहीं है| बस उसे बड़े भाई साहब से दिली लगाव है| इसका एक कारण ये हो सकता है कि बड़े भाई साहब की कृपा दृष्टि हमेशा पिंटू के साथ साये की तरह बनी रहती है| लेकिन चाचा के मामले में बड़े भाई साहब कभी हाँथ नहीं डालते| चाचा अगर कहे कि अभी दिन है तो बड़े भाई साहब सिर्फ इतना भर कह सकते हैं कि लगता है आसमान में सूर्य को बादल ने ढक रखा है रात होने का तो इस वक्त कोई सवाल ही नहीं उठता है जी...|

पिंटू ने बस अपने अधिकार की बात कही थी| वो भी इसलिए क्यूंकि सूचना के आभाव में ही कोई छात्र उस दिन समय से विभाग में नहीं पहुँच पाया था| पिंटू समझ रहा है कि यहाँ पे बात ज्यादे कुछ नहीं है| न ही गुरूजी का गुस्सा गलत है और न ही विद्यार्थी दोषी है| मामला बस सूचना न मिलने का है इसलिए उसने झट से सही कारण बता दिया|

पिंटू को इस बात की जानकारी नहीं थी कि बड़े भैया का काम सूचना देना नहीं है| क्योंकि पिंटू जब से आया है वह यही देखता है कि विभाग का सारा काम बड़े भैया ही देखते हैं| आर. टी. आई. का जवाब देने से लेकर खुद के साइन किए कागजों पर मोहर मारने तक| मैंने पिंटू को समझाते हुए कहा- कायदे से कहें तो सूचना देना आचार्यों का काम नहीं है| फिर पिंटू ने मुस्कुराते कहा- दरअसल ये बड़े भैया के हसीन सपने हैं| दिन-भर विभाग में बाबूगिरी करते हैं और जब हम छात्रों की बात आती है तो चंद लम्हों के लिए खुद को आचार्य महसूस करने लगते हैं|
 -लल्टू कुमार 
शोधार्थी, हरियाणा केंद्रीय विश्‍वविद्यालय 




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