कहानी: जेएनयू की जंगल कथा -मुलायम सिंह
कहानी जेएनयू की जंगल कथा मुलायम सिंह
अगले
दिन शेर को इस खबर की जानकारी हुई। उसे पता चला कि उसके गैर मौजूदगी में एक विशेष
आम सभा बुलाई गई थी और बड़े लोकतांत्रिक तरीके से उसके खिलाफ एक प्रस्ताव पास किया
गया है। पहले तो शेर गुस्से से आगबबूला हुआ लेकिन फिर उसने सब्र से काम लिया और
एक-दो दिन के बाद 15-20 शेर-शेरनियों की आपसी बैठक बुलाया। शेर ने बड़े ओजस्वी
तरीके से अपनी बात सबके सामने रखी और सबको उत्तेजित करते हुए कहा कि यह हमारे
अस्तित्व पर खतरा है। शेर ने सबके सामने अपनी गुरिल्ला रणनीति पेश किया। सभी
शेर-शेरनियों ने शेर की बात पर राजी हो गए और मिलकर छापेमारी शुरू किया। वो एक-एक
करके सभी जानवरों को खाना शुरू कर दिये। कुछ ही दिनों में पूरे जंगल में हाहाकार
मच गया। आए दिन किसी न किसी जानवर के घर पर हमला हो जाता था। अब किसी भी जानवर के
घर-परिवार सुरक्षित नहीं रहे। जंगल के चारो दिशाओं के जानवर बेहाल-परेशान होकर
इधर-उधर जान बचाकर भाग रहे थे। इन शेर-शेरनियों का कोई एक अड्डा नहीं था। इनका
आशियाना बदलता रहता था। बंदर की कॉउंसिल ने इन छापामारों को अलोकतांत्रिक,
प्रतिक्रियावादी तथा हिंसक गिरोह घोषित कर दिया।
जंगल
के जानवरों ने एक बात गौर किया कि सारे जानवर असुरक्षित और परेशान हैं लेकिन
बंदरों का चालाक कुनबा सुरक्षित है। वो 100 मीटर की ऊंचाई पर एक लंबे विशाल पेड़
के टुन्नी पर बैठे मौज कर रहे हैं। उनपर जब हमले होते तो वो एक शाखा से दूसरे शाखा
पर छलांग लगा कर निकल लेते थे। बंदरों के पोलिट ब्यूरो की मीटिंग भी अलग-अलग
शाखाओं पर बैठकर हो जाती थी। पाला तथा पोजीशन बदलने में ये बंदर एक नंबर के धूर्त
और माहिर थे। तोंते और कौवों को इन बंदरों ने अपने काम-काज का गुणगान करने की
जिम्मेदारी दे रखी थी। रंगेसियारों को इन्होंने जंगल के अन्य जानवरों को झूठ तथा
अफवाहों के माध्यम से गुमराह करने का ठेका दे रखा था। पूरे जंगल में डर के कारण
हाहाकार मचा था फिर भी जंगल के भोले जानवरों को नवनिर्वाचित बंदर राजा से बड़ी
उम्मीद थी। जंगल के अंदर बंदर यूनियन को सबसे असरदार आवाज वाला प्लेटफार्म बोला
गया। ऐसी घोषणा हुई कि सभी जानवरों को बंदर यूनियन के पीछे लामबंद होना चाहिए।
जंगलवासी मानते थे कि नया नेतृत्व लोकतांत्रिक तरीके से चुन कर आया है। जो जंगल की
आवज़ उठाने तथा जंगल के जानवरों को परेशानियों से छुटकारा दिलाने के लिए क्रांतिकारी
लड़ाई लड़ेगा। बंदर राजा ने भी चुनाव के समय सबके सामने क्या लक्षेदार भाषण दिया
था।
लेकिन
जब जंगल के वासियों को लगा कि अब हम नहीं बचेगे? सब एक-एक करके मारे जाएंगे? तो
सभी जानवर एक सुबह एकजुट होकर बंदर राजा के सामने गए। सबने एक साथ गुहार लगाई कि
मेरे क्रांतिकारी लीडरान आप क्या कर रहे हैं? शेरों का गिरोह गुस्से में चुन-चुन
कर सभी जानवरों को खा रहे हैं। आज जंगल में कोई जानवर सुरक्षित नहीं है। आपके
संघर्षों की विरासत कहां गयी? सबके अंदर भय व्याप्त है। सब सहमे हुए जान बचाकर इधर
उधर भाग रहे हैं। जंगल में हम लोगों की फ्रीडम/आजादी खत्म होती जा रही है। हमारी
फ्रीडम की जगह हमसे छीन ली गई है। चारो तरफ हमारी गतिविधियों पर निगरानी रखी जा
रही है। हम लोगों पर टारगेटेड तरीके से हमला हो रहा है। डर के मारे हम जंगल में
कोई कार्यक्रम नहीं कर पा रहे हैं। सभी जानवरों ने एक-एक करके अपनी बात रखी। बंदर
राजा ने बड़े धैर्यपूर्वक सबकी बात सुनी। सबको सुन लेने के बाद थोड़ी देर शांत रह
कर राजा ने बोला कि - आप लोग क्या चाहते हैं?
सबने
एक स्वर में बोला- महाराज! हम रेडिकल संघर्ष चाहते हैं।
अच्छा!
तो आप लोग यह चाहते है कि आप ही तरह हम भी मारे जाए? जो भी जंगल में लोकतांत्रिक
प्लेटफार्म और ‘‘सीट ऑफ सट्रगल’’ बचा है वो भी खत्म हो जाए?
क्या
आप लोग यही चाह रहे हैं?
सभी
जानवरों ने एक साथ बोला- नहीं महाराज! हम
लोग जंगल में संघर्ष चाहते हैं।
राजा
ने पूछा- कैसा संघर्ष चाहते हैं?
सभी
जानवरों ने बोला – हम लोग मौजूदा फासीवादी हमले के खिलाफ गैर समझौतावादी संघर्ष
चाहते हैं।
राजा
ने पूछा कि क्या आपके पास इस हमले के खिलाफ लड़ने का कोई प्लान है? सभी जानवरों ने
एक-एक करके अपना अलग-अलग प्लान सुझाया। सभी नें उस पर विचार-विमर्श करके सामूहिक
रूप से सहमति बनाई। सबने एक साथ राजा के समक्ष अपने संघर्ष की योजना पेश किए। बंदर
राजा ने बोला कि हम आपके प्लान पर अपनी यूनियन की कॉउंसिल में विचार करेंगे। सभी
जानवर यह सुनकर भौचक्का रह गए। सबने आश्चर्य से पूछा- महाराज! जो जानवर हर रोज
मारे जा रहे हैं, जिनकी जिंदगी खतरे में है, कुछ पता नहीं कब, कौन, कहां शिकार हो
जाए? उनका क्या होगा? इस भीषण संकट को आप समझ नहीं रहे हैं।
राजा
ने बोला- कामरेड्स! जनता जनार्दन हमारी भी अपनी सीमाएं हैं। आप समझने की कोशिश
करिये। आप ही बताइए राजा बिना मंत्रियों से मंत्रणा किए बिना कैसे कोई फैसला ले
सकता है? सारे जानवर झल्ला कर बोले- महाराज! ऐसी संकट की घड़ी में आप कोई तो उपाय
सुझाइए। अच्छा! आपको खबर है न कि किस तरह जंगल के वासियों पर हमले हो रहे हैं? सब
डर के मारे दुबके हुए हैं। सारे जानवर चाहते हैं कि आप कुछ करें। इसीलिए आपको चुना
गया है। आपके रहते हुए अगर हम लोग कुछ अलग से सोचते हैं तो फिर आपके ‘‘सीट ऑफ
स्ट्रगल’’ की तौहीनी होगी। सभी जानवरों ने अंतिम बार एक साथ निवेदन किया कि महाराज!
इस फासीवादी हमले से हम सब जंगलवासियों को बचाइये। आप जंगल के राजा हैं। जानवर-जनता
सरेआम मारी जा रही है। हर रोज किसी न किसी को प्रताड़ित किया जा रहा है। आप क्या कर रहे हैं?
बंदर
राजा ने सबकी फरियाद को सुनकर कुछ देर सोचता रहा। फिर उठकर जंगल के उस विशाल वट
वृक्ष के पेड़ पर चढ़ गया जिसके नीचे यह फरियादी सभा चल रही थी। विशालकाय वट वृक्ष पर चढ़ने के बाद बंदर
राजा बिना खाना-पीना खाये पूरी मुस्तैदी से लगा कूदने। कभी बंदर पेड़ की उपरी चोटी
पर जाता था तो दूसरे पल वह कूद कर जड़ के पास आ जाता था। कभी दांई तरफ की शाखाओं
पर दौड़ता तो कभी बांई तरफ की। राजा के इस लगन और समर्पण देखकर सभी जानवरों को
सांत्वना मिली की चलो शायद कुछ परेशानी दूर होगी। पूरे दिन बंदर राजा बिना रुके
पेड़ पर ऊपर से नीचे कूदता रहा। शाम होने पर सभी जानवर बिना कोई ठोस निर्णय के अपने
आशियाने की ओर लौट गए। घर जाकर देखते हैं तो पता चलता है कि शेरों का हिंसक गिरोह
कई रंगेसियारों को गटक गये हैं। बंदर की सभा में गई भेंड-बकरियों के मेमनें गायब
थे। कई जानवर डर के मारे इधर-उधर कंदराओं में छिपे बैठे थे। कुछ जानवर शेरों से
माफी मांग कर आपनी जान बचा रहे थे।
अगले
दिन सारे जानवर फिर बंदर राजा के समक्ष हाजिर हुए। सभी कातर स्वर में बोले- महाराज!
हम पर लगातार हमले हो रहे हैं। हमारा घर-परिवार सुरक्षित नहीं है। हमारी जिंदगी को
खतरा है। जेएनयू के जंगल से बड़े-बड़े जानवर गायब हो जा रहे हैं। जंगल में अजीब
हरकत हो रही है। सियारों ने फरियाद सुनाया कि अब हम पहले जैसा शोर-शराबा नहीं कर
सकते हैं। धीरे-धीरे हमारा स्पेस खत्म होता जा रहा है। कुत्ते-बिल्लियाँ भी परेशान
हैं। उनकी बेखौफ आजादी छीनी जा रही है। अब कुत्ते-बिल्ली एक साथ जंगल में नहीं रह
सकते हैं। बिल्लियाँ कुत्तों के आशियाने पर नहीं जा सकती हैं। बहुत बुरी तरह से छापामारी
चल रही है। कोई कुछ बोलने की साहस नहीं कर पा रहा है। बेखौफ होकर चलना मुश्किल हो
गया है। सबकी फरियाद सुनकर बंदर राजा ने फिर पेड़ पर चढ़ा और ऊपर-नीचे-दांए-बांए पूरी
लगन से कूदते हुए संघर्ष करने लगा। अबकी बार बंदर के साथ राजा के मंत्रिमंडल तथा कॉउंसिल
से साथी भी उसके साथ पेड़ पर कूदने का संघर्ष कर रहे थे। जब यह क्रांतिकारी संघर्ष
चल ही रहा था तभी पीछे से एक जानवर खबर लेकर आया कि फिर से फासीवादी हमला हुआ है।
सारे जानवरों ने राजा को आवाज लगाई। राजा पसीने से लथफथ नीचे उतरा और पूछा क्या
हुआ?
सबने जवाब दिया- महाराज! पश्चिमाबाद की तरफ कई और जानवरों पर हमला हुआ है। कुछ बड़ा कदम उठाना पड़ेगा। फासीवादी हमले के खिलाफ माहौल नहीं बन पा रहा है।
सबने जवाब दिया- महाराज! पश्चिमाबाद की तरफ कई और जानवरों पर हमला हुआ है। कुछ बड़ा कदम उठाना पड़ेगा। फासीवादी हमले के खिलाफ माहौल नहीं बन पा रहा है।
राजा
ने जबाव दिया- साथी! आप लोग देख रहें है न हम लोग कितना संघर्ष कर रहे हैं। हमने
नाश्ता और लंच भी नहीं किया। सुबह से लेकर अभी तक दौड़ रहे हैं। एक मिनट का आराम
भी नहीं किए हैं। क्या आपको हमारा संघर्ष दिखाई नहीं दे रहा है? आप ही बताइये, क्या
हमारी तरफ से संघर्ष में कोई कमी हैं? आप सबने मुझे चुनकर राजा बनाया है। थोड़ा
मुझ पर भरोसा रखिये। क्या हमने अपनी तरफ से संघर्ष में कोई कसर छोड़ी है? हमारे
संघर्ष की मिशाल के चर्चे पूरे एशिया में फैले हैं। अब आप ही बताइए इससे अधिक और
क्या हमसे चाहते हैं? हम यही कहेंगे कि साथी आप सब हमारे यूनियन पर भरोसा रखिये।
हमला बहुत बड़ा है। लड़ाई बहुत लंबी है। एक दिन यह जंग हम जरूर जीतेंगे।
सभी
जानवर हताश होकर उम्मीद का ख्वाब मन मे संजोए अपने आशियाने की ओर चले गए। तमाम
बुद्धिजीवियों और राजनैतिक विज्ञानियों का मानना है कि बंदर राजा ने जेएनयू के
जंगल में लोकतांत्रिक तरीके से राज करने यह मॉडल वहां की छात्र राजनीति से लिया था।
हालाकि जेएनयू की छात्र राजनीति दुनिया में सबसे अनूठी है। इस कथा का जेएनयू की
छात्र राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ घटनाओं में अगर सामंजस्य दिखाई दे जाए
तो वह पाठक के लिए महज संयोग मात्र है।
-मुलायम सिंह
शोध छात्र, भारतीय भाषा केंद्र
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।
ईमेल – mulayamsingh.88@gmail.com
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