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कठुआ रेप मामले में 125 करोड़ देशवासियों के नाम अधिवक्‍ता संतोष्‍ा कुमार की खुली चिट्ठी





मेरे प्‍यारे
125 करोड़ देशवासियो।

मैं विनम्रता पूर्वक आपसे कहना चाहता हूँ कि जिनकी जबान से श्‍मशान और कब्रिस्तान निकला था, वे अब पूरे देश को श्मशान और कब्रिस्तान बना रहे हैं। और बनाने-बनवाने में सफल भी हो रहे हैं पर हमें सोचना होगा कि क्या हमने श्मशान और कब्रिस्तान बनाने के लिए ही इतनी कुर्बानियां देकर देश को आजाद कराया था। क्या बात-बात में हिंदू-मुसलमान ढूंढने के लिए ही हमारे पूर्वज लाखों की संख्या में शहीद हुए थे? और क्या आज हम देश को यूं ही बर्बाद हो जाने देंगे? सोचिए और संभाल लीजिए इस देश को वरना यह देश बर्बाद हो जाएगा।



आपसे हमारी दोनों हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि इस देश को संभाल लिजिए। इस देश को हिंदू-मुसलमान का देश बनने से बचा लिजिए। एक आठ साल की बलात्कार पीड़ित बच्ची को सिर्फ बलात्कार पीड़ित बच्ची ही रहने दीजिए। उसे हिंदू मुसलमान मत बनाइए। उसके दर्दों को हिंदू मुसलमान बनाकर छोटा मत किजिए। एक बलात्कार पीड़ित मासूम बच्ची के बाप के दर्द को महसूस कीजिए और उसे हिंदू मुसलमान मत बनाइए। एक बलात्कार पीड़ित बेटी के बाप का दर्द सिर्फ दर्द होता है। वह हिंदू मुसलमान नहीं होता। एक बलात्कार पीड़ित मां का दर्द सिर्फ माँ का दर्द होता है। उसे हिंदू-मुस्लिम मत बनाइए। एक बलात्कार पीड़ित बहन की भाई का दर्द  सिर्फ भाई का दर्द होता है। उसे हिंदू मुसलमान का दर्द बनाइए। आखिर हमें क्या हो गया है? 

हर चीज में हम हम जाति और धर्म क्यों ढूढ़ लाते हैं? क्या हम जाति और धर्म के नाम पर अंधे हो चुके हैं। इसलिए हमें सही गलत नहीं दिखता और हम सब के सब जाति और धर्म के नाम पर धृतराष्ट्र बन चुके हैं। यही कारण है कि आज आठ साल की बलात्कार पीड़ित बच्ची को बलात्कार पीड़ित बच्ची नहीं, बल्कि हिंदू और मुसलमान के रूप में देख कर आंखें मुंद ले रहे हैं। आखिर कब तक यह सब चलेगा। जब किसी मासूम बच्ची का बलात्कार होगा तो उसमें हम हिंदू मुसलमान टूटेंगे और फिर हम अपनी आंखें बंद कर लेंगे। इस तरह से हम लोग कितने दिन सुरक्षित रह लेंगे और 



हम अब अपने आने वाली औलादों को कहां और कैसे सुरक्षित रख पाएंगे। जब बहुत पवित्र समझने जाने वाली मंदिर मस्जिद में भी हमारी आने वाली पीढ़ी और हमारा देश सुरक्षित नहीं रहेगा तब फिर क्या करेंगे हम ऐसे धर्म का और क्या करेंगे ऐसे धर्म के ठेकेदारों का। इसका जवाब हमें ढूंढना होगा। धर्म का उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए नहीं बल्कि असामाजिक तत्व ढाल के रूप में कर रहे हैं ताकि उनका बचाव हो सके और हम लोग ऐसे खलनायकों को धर्म के नायक के रूप में देख रहे हैं। 

पढ़िए एक पीड़ित पिता का दर्द... ... ...
हमने आसिफा को हर जगह खोजा...
मगर मंदिर की तलाशी नहीं ली,
हमें मालूम था कि वो बहुत 'पवित्र' जगह होती है!



पवित्र जगह को पवित्र ही रहने दीजिए। उसे असामाजिक तत्वों के लिए सुरक्षा कवच मत बनाइए। धर्म की आड़ में छुपे भेड़ियों को पहचानिए और उन्हें सजा दिलाइए। तभी आप इस देश को बचा पाएंगे वरना यह देश बर्बाद हो जाएगा। 

जब इस देश के लोगों का मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे में हत्याएं होंगी तो फिर हम कहाँ सुरक्षित रहेंगे और आने वाली पीढ़ियां जब हम से हिसाब पूछेगी कि जब यह सब हो रहा था तो आप क्या कर रहे थे? फिर हम क्या जवाब देंगे? अलाह, भगवान और आने वाली पीढ़ियों से डरिए और बचा लिजिए इस देश तबाह होने से। यही एक विकल्प है।
आपका ही, 
संतोष कुमार
अधिवक्‍ता, सुप्रीम कोर्ट, दिल्‍ली
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