भारत का राष्ट्रीय दोष क्या है?
भाई सारे
दुर्गुण चले जाते हैं, पर वह अभागी ईर्ष्या नहीं
जाती...। यही हमारा राष्ट्रीय दोष है-परनिंदा और दूसरों की महानता से जलना। केवल
हम ही बड़े हो, दूसरा कोई बड़ा ना हो सके।
-स्वामी विवेकानंद, शिकागो, 19 मार्च, 1894
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