अमेरिका में जेल को सुधार साला क्यों कहा जाता है? : स्वामी विवेकानंद Why is prison in America called a reformer? : Swami Vivekananda
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Washington-dc |
कल स्त्री-कैदखाने की व्यवस्थापिका श्रीमती जॉनसन यहां पधारी थी। यहां कैदखाना नहीं, बल्कि ‘सुधारशाला’ कहते हैं। मैंने अमेरिका में जो जो बातें देखी हैं, उनमें से यह एक बड़ा बड़ी आश्चर्यजनक वस्तु है। कैदियों से कैसा सहृदय बर्ताव किया जाता है, कैसे उनका चरित्र सुधर जाता है और लौटकर फिर कैसे समाज के आवश्यक अंग बनते हैं- ये सब बातें इतनी अद्भुत और सुंदर हैं कि तुम्हें बिना देखे विश्वास नहीं होगा। यह सब देखकर मैंने जब मैंने अपने देश की दशा सोची तो मेरे प्राण बेचैन हो गए। भारतवर्ष में हम लोग गरीबों को, साधारण लोगों को, पतियों को क्या समझा करते हैं! उनके लिए न कोई उपाय है, न बचने की राह और न उन्नति के लिए कोई मार्ग ही है। भारत के गरीबों का, भारत के पतितों का, भारत के पापियों का- कोई भी साथ ही नहीं, कोई भी सहायक नहीं, वे चाहे जितनी भी कोशिश क्यों न करें, उनकी उन्नति का कोई उपाय नहीं। वे दिन-पर-दिन डूबते जा रहे हैं। राक्षस जैसा नृशंस समाज उन पर ज लगातार चोटें कर रहा है, उसका अनुभव तो वे खूब कर रहे हैं, पर वे जानते नहीं कि वे चोटें कहां से आ रही हैं। वे भूल गए हैं कि वे भी मनुष्य है। इसका फल हुआ-दासता और पशुता। विचारशील लोग कुछ समय से समाज की यह दुर्दशा समझ गए हैं, परंतु दुर्भाग्यवश, वे इसका सारा दोष हिंदू धर्म के सिर पर मर रहे हैं। वे सोचते हैं कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धर्म का नाश ही नहीं समाज की उन्नति का एकमात्र उपाय है। सुनो मित्र, प्रभु की कृपा से मुझे इसका रहस्य मालूम हो गया है। दोस्त धर्म का नहीं है। इसके विपरीत तुम्हारा धर्म तो तुम्हें यही सिखाता है कि संसार भर के सभी प्राणी तुम्हारी आत्मा के विविध रूप हैं। समाज की इस हीन अवस्था का कारण है इस तत्व को व्यावहारिक आचरण में न लाना, सहानुभूति का अभाव, हृदय का अभाव। प्रभु तुम्हारे पास बुद्धरूप में आए और तुम्हें गरीबों, दुखियों और पापियों के लिए आंसू बहाना और उनके सहानुभूति करना सिखाया, परंतु तुमने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया...
-स्वामी विवेकानंद, मेरी जीवनकथा, पृष्ठ
संख्या 91
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