महात्मा गांधी की तीन बार हुई थी सगाई
मैं चाहता हूं कि मुझे यह प्रकरण न लिखना पड़ता। लेकिन इस कथा में मुझको ऐसे कितने ही कड़वे घूंट पीने पड़ेंगे। सत्य का पुजारी होने का दावा करके मैं और कुछ कर ही नहीं सकता। यह लिखते हुए मन अकुलाता है कि 13 साल की उम्र में मेरा विवाह हुआ था। आज मेरी आंखों के सामने 12-13 वर्ष के बालक मौजूद हैं। उन्हें देखता हूं और अपने विवाह का स्मरण करता हूं, तो मुझे अपने ऊपर दया आती है और इन बालकों को मेरी स्थिति में से बचने के लिए बधाई देने की इच्छा होती है। तेरहवें वर्ष में हुए अपने विवाह के समर्थन में मुझे एक भी नैतिक दलील सूझ नहीं सकती। पाठक यह न समझें कि मैं सगाई की बात लिख रहा हूं। काठियावड़ में विवाह का अर्थ लग्न है, सगाई नहीं। दो बालकों को ब्याहने के लिए मां-बाप के बीच होने वाला करार सगाई है। सगाई टूट सकती है। सगाई के रहते वर यदि मर जाए, तो कन्या विधवा नहीं होती। सगाई में वर-कन्या के बीच कोई संबंध नहीं रहता। दोनों को पता भी नहीं होता। मेरी एक-एक करके तीन बार सगाई हुई थी। ये तीन सगाइयाँ कब हुई, इसका मुझे कुछ पता नहीं। मुझे बताया गया था कि दो कन्याएं एक के बाद एक मर गई। इसीलिए मैं जानता हूं कि मेरी तीन सगाई हुई थी। कुछ ऐसा याद पड़ता है की तीसरी सगाई कोई सात साल की उम्र में हुई होगी। लेकिन मैं नहीं जानता कि सगाई के समय मुझसे कुछ कहा गया था। विवाह में वर कन्या की आवश्यकता पड़ती है, उसकी एक विधि होती है; और मैं जो लिख रहा हूं, सो विवाह के विषय में ही है। विवाह का मुझे पूरा-पूरा स्मरण है।
महात्मा गांधी
अपनी आत्मकथा में ऐसा लिखा है
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