भारत के हर युवा को एक बार जापान अवश्य जाना चाहिए : स्वामी विवेकानंद
आपने जापान में क्या देखा और क्या ऐसी संभावना है कि भारत जापान के प्रगतिशील चरणों का अनुसरण करे?
बिल्कुल नहीं, जब तक कि भारत के 30 करोड़ एक संपूर्ण राष्ट्र की भांति परस्पर मिल नहीं जाते, यह संभव नहीं है। संसार ने कभी जापानियों के समान देशभक्त और कलाप्रिय जाति नहीं देखी और उनकी एक विशेषता यह है कि जबकि यूरोप और दूसरे देशों में कला, साधारणतया गंदगी के साथ पायी जाती है, जापान में कला का अर्थ होता है काला और परम स्वच्छता। मेरी इच्छा है कि हमारे नवयुवकों में से प्रत्येक अपने जीवन में कम से कम एक बार जापान अवश्य जाये। वहां जाना बहुत आसान है। जापानी समझते हैं कि हिंदुओं के प्रत्येक वस्तु महान है और विश्वास करते हैं कि भारत भूमि पवित्र है। जापानी बुद्धमत उससे बिल्कुल भिन्न है जो हमें लंका में दिखाई देता है। वह बिल्कुल वेदांत है। वह सकारात्मक और ईश्वरवादी बुद्धमत है, लंका का नकारात्मक निरीश्वरवादी बुद्धमत नहीं।
जापान की हठात महानता की कुंजी क्या है?
जापानियों का अपने में विश्वास और अपने देश के लिए उनका अनुराग। जब आपके पास ऐसे मनुष्य होंगे, जो अपना सब कुछ देश के लिए होम कर देने को तैयार हों, भीतर तक एकदम सच्चे, जब ऐसे मनुष्य उठेंगे, तो भारत प्रत्येक अर्थ में महान हो जाएगा। ये मनुष्य हैं, जो देश को महान बनाते हैं। देश का अर्थ क्या होता है? यदि आप जापानियों की सामाजिक नैतिकता और राजनीतिक नैतिकता ले लेते हैं, तो आप उतने ही महान हो जाएंगे, जीतने जापानी हैं। जापानी अपने देश के लिए सब कुछ बलिदान करने को तैयार हैं और एक महान राष्ट्र बन गए हैं। पर आप ऐसे नहीं हैं और आप आप नहीं बन सकते; आप अपना सब कुछ केवल अपने परिवारों और अपनी संपत्ति के लिए बलिदान कर सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद
विवेकानंद साहित्य, भाग चार
पृष्ठ संख्या 249-250
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